Sunday, July 15, 2007

तुम युवा हो । कुछ खास मायने हैं इस शब्द के .युवा होना तुम्हारी शारीरिक अवस्था की ही अभिव्यक्ति मात्र नहीं है.यह जीवन का सर्वाधिक उर्जावन पड़ाव है.क्या तुम इस अकूत ताकत को सम्हाल सकते हो?कुछ कर गुजरने की चाह है तुम्हारे मन में ,लेकिन क्या तुम अपने लक्ष्य के प्रति सतर्क हो .तुममें पल प्रतिपल क्या घटता है?क्या तुम इस सब के प्रति जागरूक हो?तुम भीड़ में अपनी पहचान ,अपना व्यक्तित्य क्यों खो देते हो?क्या तुम अपनी रौशनी खुद हो या फिर दिशाहीन भटकते रहते हो अपने अँधेरे मन के बियावान में ?तुम अपने मानक खुद तय करते हो या दुसरे तुम्हें बनाते है.क्या तुममें साहस है उस रास्ते पर चलने का जहाँ लोगों की मान्यता तुम्हें ना मिले.या फिर तुम्हें पता ही नहीं तुम कब अपने आप को किसी और को सौंप देते हो कच्ची मिटटी की तरह,कि कोई भी तुम्हें ढाल दे मनचाहे आकर में ,क्या तुम किसी का उपहास करके इसलिये हँसते हो ताकी दूसरे तुम पर ना हंसें ?
क्या तुम्हारे पास वक्त है ?आत्ममंथन का ?तो चलो यह एक शानदार शुरुआत होगी .हम आगे बढ़ें बेहतर सत्य की ओर !