Friday, July 4, 2008

अशांति का एक और दौर.

जम्मू कश्मीर में विरोध प्रदर्शन ,विहिप का बंद और मुलायम सिंह का एटॉमिक मसले पर रुख बदलना ये सारी घटनाएँ एक ही बात की तरफ़ इशारा करती हैं की हमारा लोकतंत्र कितना अपरिपक्व है।अमरनाथ मसला हालाँकि संवेदनशील है लेकिन जब जम्मू में ही इतना विरोध हो रहा था तो फ़िर पूरे देश को 'बंद' करना कहाँ तक तार्किक था । जैसा अंदेशा था वैसा हुआ भी । इंदौर में दंगों में लोग मारे गए ,मरने वाले लोग कौन थे ये बताने की जरूरत नहीं । मुद्दा कोई भी हो आम आदमी ही मारा जाता है ।कोई अपनी रोज़ी के लिए निकलता है तो कोई किसी और मज़बूरी में और बस लौट कर आना नहीं हो पाता ,उन्हें रास्ते में होई मार दिया जाता है कोई पुलिस की गोली का शिकार होता है तो कोई किसी की नफरत का ।और पुलिस भी करे तो क्या ?कभी कभी शान्ति बहाल करने का और कोई उपाय दिखता नहीं है । लेकिन ये मसले राजनीती से प्रेरित ज्यादा होते हैं ,और पहचान को मुद्दा बनाया जाता है । आप को डराया जाता है कि आप सुरक्षित नहीं हैं या कि आप जिस समुदाय के सदस्य हैं उस पर आंच आ रही है और आप को अपना बचाव करना है । ये जो दंगे खड़े किए जाते हैं उनमें किन लोगों को इस्तेमाल किया जाता है -गरीब बेरोजगार लड़के जिनके पास न कुछ खोने को है और न ही भविष्य कि कोई उम्मीद । इहें भरोसा दिलाया जाता है कि ये अपनी पशुता जैसे चाहें वैसे निकल सकते हैं और भीड़ में इनकी कोई पहचान नहीं रहेगी ,वे ऐसा करते भी हैं ,कोई 'रिवार्ड' की उम्मीद न भी हो तो भी ये अपनी कुंठा और आक्रोश तो निकल ही सकते हैं ।
और कुछ धार्मिक अतिवादी चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान उतर पड़ते हैं । उन्हें वास्तव में धर्मं का लिहाज़ नहीं होता लेकिन वे 'दूसरो' को बर्दाश्त नहीं कर सकते । ये लोग कितना पालन करते हैं अपने धर्म का हम सब जानते हैं। क्यों हम लोग इन 'चुनिन्दा' मूर्खों को बर्दाश्त करते हैं, इनके इशारों पर नाचते हैं । अपना आत्म सम्मान खो बैठे हैं । दूसरो के कहने पर बहुत चल चुके । बहुत इस्तेमाल किया जा चुका है आम आदमी का । अब तो अपनी कुछ इज्ज़त करो । अपनी जिंदगी इतनी मामूली बातों पर खर्च मत करो ।
और उधर एक मौका परस्त नेता मुलायम सिंह को देखो.उन्हें अचानक क्या हो गया की परमाणु समझौते का समर्थन करने लगे ।और बात क्या करते हैं कि मनमोहन सिंह अगर उन्हें इस बात का यकीन दिला देते हैं की यह समझौता देश के हित में है तो वे समर्थन देने के लिए तैयार हैं । यह कैसी बचकानी बात है, मुलायम कहाँ थे अब तक ,कहाँ सो रहे थे । जब मनमोहन सिंह ने संसद में अपना पक्ष रखा था तब सारी बात स्पष्ट हो गई थी ,इसके अलावा भी इस मुद्दे को कई बार स्पष्ट किया जा चुका है ,तब मुलायम के दिमाग में बात नहीं गई । मैं बेशक इस समझौते के पक्ष में हूँ लेकिन आप बातों पर गौर कीजिये । कितने बेगैरत हैं हमारे नेता । किसी भी तरह सत्ता चाहिए इन्हें । यहाँ जम्मू मुद्दा और मुलायम सिंह का ज़िक्र एक साथ इसलिए किया है कि दोनों बातें एक सी हैं दोनों राजनीतिक हैं ।इन घटिया लोगों पर हम क्यों अपनी जान कुर्बान करें । लेकिन ऐसा हो रहा है । और जम्मू में एक बहुत ही खतरनाक हादसा हो चुका है । लोगों ने दवाब डालकर सरकार को मज़हबी मुद्दे पर झुका लिया है । अब इस से अलगाव कि आग को हवा ही मिलेगी ।
सोचता हूँ कि क्या होगा ................................ ?