Saturday, September 13, 2008

ये राज ठाकरे कौन है?

मैं अपने ब्लॉग में कुछ भी ऐसा नही लिखना चाहता था जिसमें किसी व्यक्ति के प्रति आक्षेप हो ,लेकिन बात गंभीर है और एक महत्वहीन व्यक्ति द्वारा अनावश्यक रूप से पैदा की गई गड़बडियों की क्षतिपूर्ति तो करनी ही होगी।

महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है निकृष्ट है ।' महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ' के गुंडे अव्यवस्था फैला रहे हैं और यह सब हो रहा है उनके नेता राज ठाकरे के निर्देशों पर । महाराष्ट्र सरकार घबराई हुए है ,केन्द्र सरकार चुप है ,लोगों में तो साहस रहा ही नहीं,और शायद बौद्धिकों के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं है । ऐसा नही है कि कोई चर्चा नहीं हो रही । हो रही है लेकिन फुसफुसाहट भरे लहजे में । अरे ये भी कोई बात हुई, एक गैरजिम्मेदार शख्स हमें बताएगा कि हमें कौन सी भाषा बोलनी है कौन सी नहीं ।राज ठाकरे होते कौन हैं?जो आदमी देश को कमजोर करेगा ,महज अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए वो मेरा निजी दुश्मन है । मैं विचारों की आजादी का समर्थक हूँ और सारी भाषाओँ का सम्मान करता हूँ । लेकिन ये हर कोई जानता है की राज क्या हैं और क्या चाहते हैं।
क्या लिखूं ?कुछ लिखने के लिए है क्या ?लोकतंत्र का अपमान इन लोगों ने नहीं किया है ,अपमान हमने किया है । सच तो यही है कि हम शायद अभी तक लोकतंत्र के काबिल हुए ही नहीं हैं ।शर्म की बात हमारे लिए है ,हम पर वैसा ही शासन होता है जिसके काबिल हम होते हैं।आज MNS कुछ भी नहीं है फ़िर भी हंगामा खड़ा हुआ है ।मैं मराठी लोगों से आग्रह करूँगा कि अपने मन में किसी तरह की संकीर्णता न पालें । विरोध करें, सड़कों पर उतरें और अपना मत रखें कि हमारे देश में राष्ट्रभाषा बोलना कोई अपराध नहीं है । आदर्श तो यही होगा कि विरोध स्वयं मराठी ही करें ।

Saturday, September 6, 2008

आओ शिव को विष पिलायें!

पुराणों की कुछ कथाएँ बड़ी ही दिलचस्प हैं ,आँखें खोल देने वाली हैं . लेकिन उन्हें सीधे सीधे वैसे ही लें जैसे उन्हें लिखा या कहा गया है ।पुराणों के साथ एक बहुत ही गंभीर समस्या रही है ,वो ये की इन्हें रचने वालो का कोई कोई उद्देश्य रहा है सार तो प्रत्येक अच्छी कथा में होना चाहिए लेकिन यहाँ कुछ 'विशिष्ट' प्रयोजन रहे हैं सन्दर्भ है समुद्र मंथन का जब बहुत सी मूल्यवान वस्तुओं के साथ 'हलाहल' निकला , महाभयंकर विष जो संभाले नहीं संभल रहा था देवता तो हमेशा से ही स्वार्थी रहे हैं,और फ़िर उन में उस विष को सम्हालने का तो साहस था और ही क्षमता ।अंत में शिव के पास विनती लेकर जाते हैं , शिव का क्या है वे तो त्यागी हैं योगी हैं ,सहज मान गए और विष पी लिया ध्यान दें यहाँ समुद्र मंथन से प्राप्त कोई अन्य वस्तु शिव को अर्पित नहीं की गई लेकिन उनसे विष पीने को कहा गया
और ये समुद्र मंथन क्या था। एक इशारा है कि प्रकृति के दोहन से बहुमूल्य चीजों के साथ-साथ विनाशकारी विष भी निकलता हैं। ठीक वैसे ही जैसे अभी हो रहा है प्रदूषण,ग्लोबल वार्मिंग ,ये सब हलाहल ही हैं और अब कोई शिव नहीं आयेगे खैर मेरे कहने का आशय यह था कि हम चाहते हैं कि 'कोई' आए और हमारी विपदाओं को अपने सर ले ले हमने अवतारों की कहानियाँ बुनी ,महापुरुषों में देवत्व थोपा लेकिन ख़ुद में कभी इतना साहस नहीं आया कि एक इकाई के तौर पर अपने आप को बदल दें
और ऐसा करना बेहद सुविधाजनक था; किसी और को कोसना चाहे वो व्यवस्था हो या समाज। superhero कोई फैंटेसी नहीं है , वो हम सब में मौजूद है बदलाव की ताकतें हमारे अन्दर ही है ।पहचानो उसे इसके लिए तुम्हें बस इतना साहस चाहिए की तुम स्वयं को अपनी सम्पूर्ण नग्नता में देख सको ।अपने भय और अपनी कमजोरियों को देखो , बिना किसी आवरण के अब विष पिलाने के लिए किसी शिव को मत ढूंढो शिव हो जाने में ही शिव का सम्मान है यही शिवत्व है ,यही तुम हो