Saturday, September 6, 2008

आओ शिव को विष पिलायें!

पुराणों की कुछ कथाएँ बड़ी ही दिलचस्प हैं ,आँखें खोल देने वाली हैं . लेकिन उन्हें सीधे सीधे वैसे ही लें जैसे उन्हें लिखा या कहा गया है ।पुराणों के साथ एक बहुत ही गंभीर समस्या रही है ,वो ये की इन्हें रचने वालो का कोई कोई उद्देश्य रहा है सार तो प्रत्येक अच्छी कथा में होना चाहिए लेकिन यहाँ कुछ 'विशिष्ट' प्रयोजन रहे हैं सन्दर्भ है समुद्र मंथन का जब बहुत सी मूल्यवान वस्तुओं के साथ 'हलाहल' निकला , महाभयंकर विष जो संभाले नहीं संभल रहा था देवता तो हमेशा से ही स्वार्थी रहे हैं,और फ़िर उन में उस विष को सम्हालने का तो साहस था और ही क्षमता ।अंत में शिव के पास विनती लेकर जाते हैं , शिव का क्या है वे तो त्यागी हैं योगी हैं ,सहज मान गए और विष पी लिया ध्यान दें यहाँ समुद्र मंथन से प्राप्त कोई अन्य वस्तु शिव को अर्पित नहीं की गई लेकिन उनसे विष पीने को कहा गया
और ये समुद्र मंथन क्या था। एक इशारा है कि प्रकृति के दोहन से बहुमूल्य चीजों के साथ-साथ विनाशकारी विष भी निकलता हैं। ठीक वैसे ही जैसे अभी हो रहा है प्रदूषण,ग्लोबल वार्मिंग ,ये सब हलाहल ही हैं और अब कोई शिव नहीं आयेगे खैर मेरे कहने का आशय यह था कि हम चाहते हैं कि 'कोई' आए और हमारी विपदाओं को अपने सर ले ले हमने अवतारों की कहानियाँ बुनी ,महापुरुषों में देवत्व थोपा लेकिन ख़ुद में कभी इतना साहस नहीं आया कि एक इकाई के तौर पर अपने आप को बदल दें
और ऐसा करना बेहद सुविधाजनक था; किसी और को कोसना चाहे वो व्यवस्था हो या समाज। superhero कोई फैंटेसी नहीं है , वो हम सब में मौजूद है बदलाव की ताकतें हमारे अन्दर ही है ।पहचानो उसे इसके लिए तुम्हें बस इतना साहस चाहिए की तुम स्वयं को अपनी सम्पूर्ण नग्नता में देख सको ।अपने भय और अपनी कमजोरियों को देखो , बिना किसी आवरण के अब विष पिलाने के लिए किसी शिव को मत ढूंढो शिव हो जाने में ही शिव का सम्मान है यही शिवत्व है ,यही तुम हो

1 comment:

Sunil Deepak said...

आदित्य जी, ईकाइयाँ जो हर देश में अपनी अकेली लड़ाईयाँ लड़ती हैं, दिक्कत है कि अधिकतर समाज को इस लड़ाई में दिलचस्पी नहीं, और जब तक बहुतर समाज नहीं सोचेगा, ईकाइयाँ मेहनत करके भी बदल नहीं पातीं. यह दूसरी बात है कि जिन लोगों में यह भावना एक बार आ जाये, उन्चहें इसकी परवाह नहीं होती कि अन्य कौन क्या रहा है, वह तो अपनी राह पर ही चलते हैं. कुछ दिन पहले देखी फ़िल्म "मुम्बई मेरी जान" में माधवन यानि निखिल अग्रवाल का चरित्र कुछ इसी तरह का था.